अम्मा की कहानियाँ
हनुमानचालीसा
तुलसीदास जी एक बड़े सन्त थे। वे भगवान रामचन्द्र जी के दर्शन करना चाहते थे। रोज स्नान करने के बाद एक लोटा पानी एक पीपल के पेड़ की जड़ मे डालते थे। उस पेड़ पर एक भूत रहता था। तुलसीदास जी के पानी डालने से पेड़ हरा-भरा हो गया। तुलसीदास जी से भूत बहुत प्रसन्न हुआ ओर उनके सामने खड़ा हो गया। उसने तुलसीदास जी से कहा कि जिस पेड़ पर मैं रहता हूँ तुमने उसको हरा-भरा कर दिया। तुम्हें क्या चाहिए। तुलसीदास जी ने कहा कि मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। मैं केवल भगवान राम के दर्शन करना चाहता हूँ। भूत ने कहा वह तो मैं नहीं करा सकता। तुलसीदास जी ने पूछा कि भगवान राम के दर्शन कौन करा सकता है। भूत ने कहा कि उनके दर्शन तो केवल हनुमान जी करा सकते हैं। तुलसीदास जी ने कहा कि मैं तो हनुमान जी को पहचानता नहीं। उन्हें मैंने कभी देखा नहीं। भूत ने कहा देखो एक जगह है जहाँ भगवान की कथा होती है वहाँ हनुमान जी जाते हैं। वहाँ भेस बदल कर सबसे पीछे चुपचाप बैठ जाते हैं और जब कथा समाप्त होती है उठ कर चले जाते हैं। उनको पहचान लो और उनके पैर पकड़ लो।
तुलसीदास जी कथा में पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा कि एक बुड्ढा ब्राह्मण पीछे आकर बैठ गया है। जैसे ही कथा समाप्त हुई तुलसीदास जी ने बुड्ढे के पाँव पकड़ लिए। बुड्ढे ने कहा कि मेरे पैर क्यों पकड़ रहे हो। मुझे छोड़ो और जाने दो। तुलसीदास जी ने कहा कि मैं आपको नहीं जाने दे सकता। बुड्ढे ने कहा कि मैं एक बुड्ढा हूँ मुझे क्यों पकड़ रखा है मुझे छोड़ दो। तुलसीदास जी ने कहा आप किसी भी भेस में हों पर आप हनुमान जी हो। आपको मुझे दर्शन देनें होंगे। आप मुझे भगवान रामचन्द्र जी के दर्शन करा दीजिए। हनुमान जी ने देखा कि उन्हें तुलसीदास जी ने पहचान लिया है। उन्होंने अपने दर्शन दे दिये और कहा तुम चित्रकूट जाओ। वहाँ सुबह भगवान रामचन्द्र जी आते हैं। तुलसीदास जी चित्रकूट पहुँच गए। वहाँ नदी किनारे घाट पर अपना तखत बिछा दिया और सोचा कि जब भगवान रामचन्द्र जी आयेंगे उनके तिलक लगा दूँगा। जब भगवान रामचन्द्र जी और लक्ष्मण जी आए तब तुलसीदास जी भगवान के ध्यान में मग्न थे। रामचन्द्र जी ने तुलसीदास जी का घिसा चन्दन अपने आप माथे पर लगा लिया। हनुमान जी यह देख रहे थे। उनको आश्चर्य हुआ कि भगवान सामने खड़े हैं और चन्दन लगा रहे हैं पर तुलसीदास जी अपने ध्यान में खोए हुए हैं। हनुमान जी ने दोहा पढ़ा
चित्रकूट के घाट पर भई सन्तन की भीर
तुलसीदास चन्दन घिसें तिलक देत रघुबीर
तुलसीदास जी ने जब यह दोहा सुना तब आँख खोली और देखा भगवान सामने खड़े हैं। वे भगवान के चर्णों में गिर गए। भगवान तुलसीदास जी से प्रसन्न हुए।
तुलसीदास जी ने हनुमान जी की प्रशंसा में हनुमानचालीसा लिखा। तुलसीदास जी ने कहा जो कोई हनुमानचालीसा पढ़ेगा उसे भगवान के दर्शन होंगे और कोई संकट नहीं आयेगा।
श्री हनुमान चालीसा
श्रीगुरू चरण् सरोजरज, निजमनमुकुर सुधार।
बरणों रघुबर बिमल यश, जो दायक फलचार।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन – कुमार।
बल बुद्धिबिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीस तिहूँलोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनि - पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुडल कुंचित केशा ।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । कांधे मूँज जनेऊ साजै ।।
शंकर – सुवन केशरी – नन्दन । तेज प्रताप महा जग-वन्दन ।।
विद्यावान गुणी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । विकट रूप धरि लंक जरावा ।।
भीम रूपधरि असुर सँहारे । रामचंद्र के काज सँवारे ।।
लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।।
रघुपति कीन्ही बहुत बढ़ाई । तुम मम प्रिय भरतहिसम भाई ।।
सहस बदन तुम्हारो यश गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा । नारद शारद सहित अहीसा ।।
यम कुबेर दिगपाल जहाँते । कवि कोविद कहि सके कहाँते ।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ।।
तुम्हारो मंत्र बिभिषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
युग सहस्त्र योजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरजनाहीं ।।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ।।
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँकते काँपै ।।
भूत पिशाच निकट नहीं आवैं। महीबीर जब नाम सुनावै ।।
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।
संकट से हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।।
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोइ लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ।।
चारों युग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ।।
साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ।।
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ।।
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।
तुम्हरे भजन राम को भावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ।।
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ।।
और देवता चित न धरई । हनुमत सेई सर्व सुख करई ।।
संकट हरै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
जै जै जै हनुमान गोसाँई । कृपा करहु गुरु देव की नाई ।।
जो सत बार पाठकर जोई । छुटहि बंदि महासुख होई ।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ।
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ।।
पवनतनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
रामलखन सीता सहित,
हृदय बसह सुरभूप ।